दीपक शर्मा
GULL-E-AFREEN
चुभन..... एक नज़्म
मोहर लगाना हाथी,झाड़ू
"
मैं "और "ॐ" ---ॐ और मैं
उम्मीद
वतन सदा आपका कर्ज़दार रहेगा..
ज़मीं के सीने से लिपटा ये कफ़न किसका है
नहीं समय किसी का साथी रे !
भ्रष्ट हुआ आचार विचार तो जन्मा भ्रष्टाचार
रिश्वतखोरी सीनाज़ोरी जितनी करते जाओगे
अगर चूमनी है तो चूम उस गरीब की दरगाह
जाती हूँ दृष्टि जहाँ तक ,बादल धुएँ के देखता हूँ
चलो आज से एक नई मिसाल बन जाएँ
कसक
मैं भी चाहता हूँ की हुस्न पे ग़ज़लें लिखूँ
साठ वर्षीय नेत्रहीन व्यक्ति
कोख़ का क़त्ल -नज़्म
मैं
पदम् सम्मान
ज़रा सोचो- एक इशारा
ये शहंशाहों के मक़ाबिर , ये जहाँपनाहों की मज़ार
हाथों में ले तुलसी माला ,काँधों पर भगवा दुशाला
हर बाम पर रोशन
तेरी आवाज़ सुकुन देती है बहुत
ज़रा सोचो- एक इशारा
मेरे जेहन में कई बार ये ख्याल आया
मेरी सांसों में
amar Satya
deewali ka ek juda manzar
महज़ अलफाज़ से खिलवाड़ नहीं है कविता
मेरे जेहन में कई बार ये ख्याल आया
जब गुँचा बना है तो गुल भी बनेगा
जिस रोज़ हर पेट को रोटी मिल जायेगी